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ठगिनी और व्यापारी भाग-4

         भाग-4

व्यापारी पुत्र चुप-चाप उदास होकर आगे बढ़ रहा था. वह निराशा के गहरे अंधकार में कहीं खो चुका था. धीरे-धीरे जंगल में अँधेरा छाने लगा था. उसकी बेचेनी बढ़ने लगी थी क्योंकि उसे जल्दी से उस जगंल को पार करना था. ऊपर से थकान भी उस पर हावी थी. उसके सारे सोने के सिक्के तो ब्राह्मण पुत्र श्रीदत ले गया था. अब उसके पास सिवाय निराशा के कुछ नहीं था. उसे अब भूख भी लग चुकी थी. शाम होने वाली थी. जो  मिटटी का पात्र वह अपने साथ लाया था उसमें  पानी खत्म हो चुका था इस लिए उसे प्यास भी लग चुकी थी। . इस कारण उसने चारों और पानी की तलाश की. अचानक उसे  कुछ दूर घने वृक्ष दिखाई दिए. उसने सोचा वहाँ जरुर पानी होगा इस लिए वह उन वृक्षों की तरफ बढ़ चला. वह जैसे ही उन वृक्षों के पास पहुंचा उसने देखा की वहां एक तालब था लेकिन वह बहुत ही छोटा था. उसमे पानी बहुत ही कम मात्र में बचा था चूंकि वहाँ अकाल का प्रकोप था. उसने अपने थैले को निचे रखा. फिर उसने तालाब के पानी से हाथ मुहं धोए. उसके बाद उसने अपनी माँ के हाथ का बना खाना खाया. वह जैसे ही पुन: तालाब में पानी पीने गया. अचानक एक आवाज ने उसे डरा दिया. – सुनो मित्र!`
वह चारों और पेड़ों के तरफ देखने लगा. उसे लगा की शायद कोई राहगीर उसे आवाज दे रहा है. उसने बिना किसी बात का ध्यान दिए जैसे ही पुन; तालाब का पानी पीने लगा. उसने अचानक वही आवाज सुनी. .- सुनो मित्र मैं कुछ कह रहा हूँ..
यशवर्धन डर के मारे फिर इधर-उधर देखने लगा. उसने चारों और देखने के बाद फिर जोर से कहा- त..त.. त. तुम कौन हो और मेरे सामने क्यों नहीं आ रहे हो?
- मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ दोस्त लेकिन शायद तुम मुझे देखना ही नहीं चाहते हो?
- क्या मतलब? मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रह है.
- अरे! नीचे देखो मित्र.. नीचे..
व्यापारी पुत्र डरता हुआ जब नीचे की तरफ देखता है तो उसे नजर आता है की कोई कछुआ पानी से बाहर आ रहा था. व्यापारी पुत्र ने उसकी तरफ डरते हुए कहा- तुम कौन हो? क्या तुम कोई यक्ष हो?
कछुआ- नहीं दोस्त मैं कोई गंधर्व या यक्ष नहीं हूँ. मैं एक कछुआ ही हूँ. क्या तुम मेरी मदद करोगे?
यश- कैसी मदद? मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करूँगा?
फिर व्यापारी पुत्र बिना हाथ मुहं धोए जैसे ही वहां से जाने लगता है वह कछुआ फिर से उसके पीछे से आवाज देता है. – मित्र सुनो तो मेरी बात को. अकाल का वर्ष है दोस्त. मुझे यहाँ मत छोडो. वरना मैं बिना पानी मर जाऊँगा यहाँ. कृपया करके मुझे अपने साथ ले चलो और आगे १०० मील बाद एक बड़ी सी झील है तुम मुझे वहां छोड़ दो. मित्र मैं तुम्हारा आभारी रहूँगा.
यश- नहीं मैं इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता. फिर यशवर्धन उस कछुए से बिना कुछ बात किए ही वापस जाने लगता है. वह जैसे ही कुछ कदम चलता है उसे अपने दोस्त का  कहा गया पहला कथन याद आ जाता है. जिसमे उसने कहा था की एक से भले दो. इस लिए वह पुन: उस तालाब की तरफ बढ़ता है और उस कछुए से डरते हुए पूछता है- अच्छा तुम हो तो कछुए ही ना?
कछुआ- हाँ! दोस्त मैं कछुआ ही हूँ. मैं कोई भूत, पिशाच या कोई बैताल नहीं हूँ.
यश- अगर तुम कछुए ही हो तो फिर तुम इंसानी भाषा में बात कैसे कर लेते हो?
कछुआ- वो सब मैं तुम्हे रास्ते में बता दूंगा. लेकिन क्या तुम मुझे उस झील के पास छोड़ दोगे?
यश- ठीक है छोड़ दूंगा. लेकिन वादा करो की तुम मुझे धोखा नहीं दोगे.
कछुआ- अरे! मित्र मैंने तुम्हे अपना सच्चा दोस्त माना है तुम मुझे मरने से बाचाओगे. फिर भला मैं तुम्हे क्यों धोखा दूंगा.
यश- ठीक है लेकिन तुम मेरे साथ कैसे चलोगे?
कछुआ- कैसे का मतलब क्या हुआ? तुम मुझे अपने इस थैले में डाल लो और अपनी बगल में थैले को लटका लेना.
यश- ठीक है.. फिर वह उस कछुए को उठाता है और उस थैले में डाल देता है. फिर वह अपने साथ में लाए गए छोटे से मिटटी के पात्र को पानी से भर लेता है ताकि उसे बीच रास्ते में जब भी प्यास लगे तो वह पानी पी ले. फिर वह उस कछुए के साथ आगे अपनी मंजिल की तरफ चलने लग जाता है. धीरे-धीरे सूरज डूब रहा था और व्यापारी पुत्र ने अब तक जंगल को पार नहीं किया था. इस वजह से वह बैचेन था. वह धीमे से कछुए से पूछता है.
यश- अच्छा तुमने ये बताया नहीं की तुम इंसानी भाषा कैसे बोल लेते हो?
कछुआ- ये.. ये तो हमें वरदान मिला हुआ है.
यश- मतलब?
कछुआ- मतलब यह की आज से पांच हजार वर्ष पूर्व एक देवता उस तालाब पर एक गरीब ब्राह्मण का रूप धारण करके आया था. तब हमारे एक पूर्वज ने उनका आदर सत्कार किया था यानी उन्होंने जल को शुद्ध बनाकर रखने के लिए अपने परिवार वालो से विशेष आग्रह किया था की वे तालाब में हलचल ना करें ताकि पानी गन्दा ना हो. . लेकिन वे इंसानी भाषा नहीं बोल सकते थे. तब उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उस देवता ने हमारे वंश को यह वरदान दे दिया था की हम सभी इंसानी भाषा बोलकर सभी राहगीरों का मार्गदर्शन कर सकें.
यश-अच्छा तो ये बात थी और तुमने खा-म-खा मुझे डरा दिया था.
कछुआ- कोई बात नहीं मित्र लेकिन तुम अब तो नहीं डर रहे हो ना.
यश- अब.. अब किस बात का डर. अब अगर तुमने ज्यादा बकवास की तो मैं तुम्हारी यही गर्दन मरोड़कर मार दूंगा..
कछुआ- अच्छा! लेकिन दोस्त तुम ऐसा नहीं कर सकते.
यश- क्यों नहीं कर सकता?
कछुआ- क्योंकि मैं अपनी गर्दन को अंदर छुपा लूँगा.. हा हा हा,..
यश- अच्छा बड़ी हंसी आ रही है अब तुम्हे. अगर साथ में ना लेकर आता तो वही एक महीने में स्वर्ग सिधार जाता तू.. चल अब बता की कौनसा रास्ता सबसे ज्यादा सुरक्षित है. वरना मैं मारा जाऊंगा..
कछुआ- हाँ बताता हूँ..

क्रमश...

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4 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 02:12 PM

अद्भुत 👌

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:08 PM

Good

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Miss Lipsa

30-Aug-2021 03:19 PM

Wow Bohot acha part hai

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